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सिकंदराराऊ : पुरातन वागधारा साहित्य संस्था सिकंदराराऊ को पुनःक्रियाशील पुनर्जीवित उपस्थित साहित्यकारों द्वारा किया गया। वाग्धारा साहित्य संस्था के संस्थापक सदस्य द्वय डा विष्णु सक्सेना व देवेंद्र दीक्षित शूल ने संस्था के नियमों आदि से नवीन सदस्यों को परिचित कराया।
इस अवसर पर एक कवि गोष्ठी का आयोजन गीतकार डा ०विष्णु सक्सेना के निवास पर हुआ जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार भद्रपाल सिंह चौहान ने की और संचालन अंतर्राष्ट्रीय गीतकार डॉ ०विष्णु सक्सैना द्वारा किया गया।
सर्व प्रथम मां शारदे की वंदना युवा कवि शिवम आजाद ने कुछ इस तरह की
शारदे मां तुम्हारी कृपा चाहिए ज्ञान की ज्योति मन में जला जाइए
अवनीश यादव ने शहीद को समर्पित कविता पढ़ी
गाड़ी आई फौज की, थे फौजियों के काफिले
तन तिरंगे में था लिपटा आप ना हमको मिले ।
दी सलामी आपको सम्मान में फायर चले दिल की धड़कन तुम समझना कुछ बताने हम चले ।
वहीं हास्य कवि प्रमोद विषधर ने दोहा पढ़ा
साली लगती फेसबुक, साला इंस्टाग्राम ।
लगें सलैजें रील सी हमको आठों याम ।
ओमप्रकाश सिंह एडवोकेट ने पढ़ा
एक मानवता की मंडी हो । जहां कोई नहीं पाखंडी हो ।। वहां प्रेम पताका फहरा दें । कोई और न झंडा झंडी हो ।।
देवेन्द्र दीक्षित शूल ने बड़की मुफ्त खोरी पर व्यंग्य पढ़ा
सौ रुपया का मुफ्त मिले कुछ तो हजार का छोड़ें काम , इतना प्यार हमें हराम जय रघुनंदन जय सियाराम।
गीतकार डा०विष्णु सक्सेना ने पढ़ा बातों में मिश्री घुलती ज्यों वैसे मुझ में घुल मिल जाओ ।
खुशबू ही खुशबू भर दूंगा देकर के अपना दिल जाओ ।
अंत में अध्यक्षता कर रहे भद्रपाल सिंह चौहान ने पढ़ा
कूलों ने पूछा सरिता से पर्वत घाटी मैदाने में,
इठलाती मीठे पानी की तुम हो कल कल बहती धारा
अंत में इस साहित्य ज्योति को सदा जलाने की प्रतिज्ञा ली।

INPUT – VINAY CHATURVEDI

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