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हाथरस । भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष पूर्णिमा से आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि तक पितृ पक्ष रहते है। पितृ पक्ष का बहुत अधिक महत्व होता है,इनको श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है। पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस दौरान पितरों का तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान करने से उनकी आत्मा को मुक्ति मिलने के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस बार श्राद्ध पक्ष 17 सितंबर पूर्णिमा के स्नानदान से ही पितृपक्ष प्रारंभ हो रहे हैं,जो कि 2 अक्टूबर तक रहेंगें।

वैदिक ज्योतिष संस्थान के प्रमुख एवं ज्योतिर्विद स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज के अनुसार श्रद्धा के साथ किया गया गया कार्य ही श्राद्ध कहलाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार मनुष्य को पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए और उनका तर्पण करना चाहिए। पितरों का ऋण श्राद्ध के जरिए चुकाया जा सकता है। पूर्णिमा तिथि 17 सितंबर प्रातः 11:44 मिनट से अगले दिन प्रातः 08:04 मिनट तक रहेगी इसके साथ ही श्राद्ध पक्ष शुरु हो जाएंगे जो अगले 2 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या यानी अश्विन अमावस्या के साथ समाप्त होंगे। ऐसे में पूर्णिमा का श्राद्ध 17 सितंबर मंगलवार, प्रतिपदा श्राद्ध बुधवार, द्वितीया श्राद्ध गुरुवार, तृतीया श्राद्ध शुक्रवार, चतुर्थी श्राद्ध शनिवार, पंचमी श्राद्ध रविवार, षष्ठी और सप्तमी श्राद्ध सोमवार, अष्टमी श्राद्ध मंगलवार, नवमी श्राद्ध बुधवार, दशमी श्राद्ध गुरुवार, एकादशी श्राद्ध शुक्रवार, द्वादशी श्राद्ध रविवार, त्रयोदशी श्राद्ध सोमवार, चतुर्दशी श्राद्ध मंगलवार को तथा सर्व पितृ अमावस्या 2 अक्टूबर बुधवार को रहेगी।
स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने बताया कि जिस तिथि पर व्यक्ति का निधन हुआ होता है,उसके लिए श्राद्ध कर्म पितृ पक्ष में उसी तिथि को किया जाता है परन्तु यदि किसी व्यक्ति के निधन की तिथि न पता हो तो श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान पंचमी, नवमीं एवं सर्व पितृ अमावस्या के दिन कर सकते हैं। इस कर्म के लिए योग्य ब्राह्मण द्वारा ही तर्पण करवाना चाहिए।

इनपुट: विनय चतुर्वेदी