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सासनी– 29 अगस्त। पितृ पक्ष में किये जाने वाले श्राद्ध को पार्वण श्राद्ध कहते है। शास्त्रानुसार श्राद्ध व तर्पण ब्राह्मण भोज अपराह्न दोपहर 12 बजे के बाद कराना चाहिए अपनी सुविधा अनुसार सुबह जल्दी ब्रह्मभोज कराना सर्वदा अनुचित है।
जिस दिन घर में श्राद्ध हो उस दिन श्राद्ध कर्ता को मैथुन, लंबी यात्रा, देवास सयन, पराए घर का अन्य भक्षण नहीं करना निषेध माना गया है। तथा तर्पण जल ब्राह्मण भोज के बाद ही करना चाहिए।
यह बातें शिव शक्ति आराधना ज्योतिष केन्द्र के आचार्य खगेन्द्र शास्त्री ने दिनांक दो सितंबर से शुरू होने वाले श्राद्धपक्ष को लेकर बताई। उन्होंने कहा कि सौभाग्यवती स्त्री का श्राद्ध मातृ नवमी वाले दिन करना चाहिए ,सन्यासी का श्राद्ध द्वादशी तिथि के दिन करना चाहिए, विष ,जलाग्नि, अस्त्र-शस्त्र ,चोट दुर्घटना, विषैले पदार्थ, जीव जन्तुओं के काटने से अकाल मृत्यु वालो का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को करना चाहिए भले ही उनकी मृत्यु जिस तिथि में हुई हो। उन्होंने बताया कि जिनकी तिथि याद न हो सामान्य मृत्यु को प्राप्त होने वाले व्यक्ति का श्राद्ध व चतुर्दशी तिथि वालों के श्राद्ध समर्पित अमावस्या वाले दिन करना चाहिए। श्री शास्त्री नेे बताया कि शास्त्रों के अनुसार अपराह्न काल में ही श्राद्ध करना चाहिए कभी कभी ह्रांसवृद्धि के कारण अभीष्ट तिथि भी दो दिन अपराह्न काल को स्पर्श करती है ऐसी परिस्थिति में सुविधा अनुसार श्राद्ध करना चाहिए। आचार्य ने बताया कि पूर्णिमा श्राद्ध- 1 सितंबर मंगलवार – प्रातः-9 बजकर 39 से शुरू होगा, और 2 सितंबर प्रातः 10 बजकर 40 मिनट तक रहेगा। प्रतिपदा श्राद्ध 2 सितंबर बुधवार। द्वितीय श्राद्ध 3 सितबंर गुरुवार। 4 सितंबर को कोई श्राद्ध नहीं है। तृतीय श्राद्ध 5 सितंबर शनिवार। चतुर्थी श्राद्ध 6 सितंबर रविवार । अन्य सभी श्राध्द क्रमश प्रति दिन है। सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध 17 सितंबर गुरुवार श्राद्ध है। इन तिथियों में श्राद्ध करने पर ही पित्रों की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध करें।

इनपुट -: आविद हुशेंन