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हाथरस : हाथरस जनपद के सुप्रसिद्ध चित्रकार एवं शिक्षाविद डॉ. भेद प्रकाश सिंह उर्फ चित्रकार हाथरसी को बीडीएम म्युनिसिपल गर्ल्स डिग्री कॉलेज शिकोहाबाद में आयोजित भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद द्वारा अनुदानित औपनिवेशिक कालीन वैश्विक परिदृश्य में भारतीय संस्कृति के विस्तार के विभिन्न आयाम विषय पर द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में सम्मानित किया गया।

डॉ भेद प्रकाश सिंह ने संगोष्ठी विषय पर आधारित भारतीय संस्कृति के आधार शिव नामक अपना शोध पत्र पढ़ा। जिसमें डॉ . सिंह ने बताया कि हमारे सनातन धर्म के अनुसार जितने भी व्रत ,त्यौहार एवं धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं प्रत्येक अनुष्ठान के पीछे अंतर्निहित विशेष वैज्ञानिक ज्ञान छिपा हुआ है । साधारणतः उपवास रखने के पीछे का उद्देश्य शारीरिक विकारों को नष्ट कर नई ऊर्जा का संचार करना है। मकर संक्रांति के दिवस पर तिल और गुड़ का सेवन करने का उद्देश्य ठंड के प्रति शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को तीव्र करना है। भारत में शिव के प्रति धार्मिक श्रद्धा जनमानस के हृदय में कूट-कूट कर भरी हुई है । शिव भारत और भारतीयों की अंतरात्मा में बसते हैं ।सृष्टि का निर्माण , चेतनता का भान, अपूर्ण की पूर्णता और अशुद्ध की शुद्धि भी शिव से ही है । स्वयं विष पीना और सभी में अमृत बांट देना ही शिव का धर्म एवं कर्म है ।
शिव इस चर – अचर जगत की चेतना का मूल हैं। ऐसा माना जाता है कि जहां शिवलिंग की स्थापना होती है उसे स्थान की सारी नकारात्मकता स्वयं नष्ट हो जाती है , शिव मंदिर के पास से निकलने वाली सभी बुरी शक्तियां भी उसके स्पर्श से शुद्ध हो जाती है। इसी अवधारणा के साथ शिवलिंग के जलाभिषेक को मान्यता प्राप्त हुई है ।माना जाता है कि जब बुरी शक्तियां प्रबल होती हैं , तब उनका ताप बहुत बढ़ जाता है । यही शक्ति जब शिवलिंग से टकराती है तब अपने कर्म के अनुसार वह उसका पूरा ताप हर उसे शुद्ध कर देते हैं। इस क्रम में शक्ति तो शुद्ध हो जाती है , पर उसके ताप को ग्रहण कर शिवलिंग की गर्मी बढ़ जाती है। शिवलिंग पर लगातार जल चढ़ाने से उसे अशुद्ध ताप में कमी आती है । दूध और पानी के मिश्रण से शिवलिंग की गर्मी समाप्त होती है , और शक्ति में वृद्धि होती है । तब पुनः शक्तिशाली होकर दोगुनी क्षमता से विश्व के शुद्धिकरण में संलग्न हो जाते हैं । उदाहरणतः भयंकर तनाव – थकान या काम की अधिकता से हमारा मस्तिष्क गर्म हो जाता है, तथा कार्य करना बंद कर देता है ।इसके विपरीत अगर हमारा मस्तिष्क और मन शांत हो तो हमारी कार्य क्षमता कई गुना बढ़ जाती है । हम बेहतर ढंग से काम कर पाते हैं ।शास्त्रों अनुसार हमारे द्वारा किए गए सभी कर्म स्वाधिष्ठान चक्र में संग्रहित होते हैं ।यह चक्र जल तत्व से बना है। जब भी हम कोई बुरा कर्म करते हैं, तो वह हमारे शरीर के जल चक्र को प्रदूषित करता है ।क्योंकि जल तत्व पर ही व्यक्ति की व्यक्तिगत, स्वास्थ्य, संपत्ति और आध्यात्मिक उन्नति आधारित है, इसलिए जल तत्व द्वारा बुरे कर्म ग्रहण करते ही व्यक्ति के पूरे जीवन पर दुष्प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति शिवलिंग पर जल चढ़ाता है, तो उसके स्वाधिष्ठान चक्र में प्रदूषित जल तत्व शिवलिंग पर जप के साथ चढ़ाए जा रहे जल से एकाकार हो जाता है। इस तरह शिवलिंग पर जल चढ़ाने के साथ ही जल तत्व की शुद्ध हो जाती है ।और व्यक्ति का मानसिक ,आध्यात्मिक और शारीरिक उत्थान होता है। डॉ. सिंह को राष्ट्रीय सेमिनार में उपस्थित विद्वान जनों द्वारा गले में पटुका पहनाकर एवं प्रमाण पत्र से सम्मानित किया गया।

डॉ. विनोद कुमार (उपनिदेशक – भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद , नई दिल्ली ) ने डॉ भेद प्रकाश सिंह के शोध पत्र की सराहना करते हुए कहा कि उत्तर औपनिवेशिक कालीन वैश्विक परिदृश्य में भारतीय संस्कृति के विस्तार के विभिन्न आयाम विषयक यह संगोष्ठी न सिर्फ ऐतिहासिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में पूर्व विधायक सिरसागंज हरिओम यादव, प्राचार्या प्रोफेसर गीता यादवेंदु , डॉ रवि शेखर, इतिहास विषय में शोधार्थी कृष्ण कुमार आदि लगभग 250 से अधिक बुद्धिजीवियों की उपस्थिति रही। श्री तुलाराम इंटर कॉलेज मलपुरा, आगरा के प्रधानाचार्य श्री कप्तान सिंह चाहर एवं समस्त शिक्षक बंधुओ ने डॉ भेद प्रकाश सिंह को शुभकामनाएं एवं बधाई दी।