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शिक्षा और संस्कार में प्रवेश का पुनीत दिवस है बसंत पंचमी : स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज
अलीगढ माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का पर्व देशभर में मनाया गया। इस दिन ज्ञान की देवी माँ शारदे के अवतरण दिवस के रूप में भी जाना जाता है।इस दिन से मौसम में भी विशेष परिवर्तन देखने को मिलते हैं एक सम मौसम के साथ प्रकृति की छठाओं की सुंदरता ज्ञान की देवी के अवतरण का सन्देश देती है,इसी पावन दिवस के उपलक्ष्य में वैदिक ज्योतिष संस्थान पर बसंत पंचमी पर्व वैदिक पूजा अर्चना के साथ मनाया गया।
बुधवार को महामंडलेश्वर स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज के सानिध्य में आचार्य गौरव शास्त्री,रवि शास्त्री,शिवम शास्त्री,ऋषभ शास्त्री आदि अचार्यों ने माँ सरस्वती की प्रतिमा का अभिषेक करवाया और फूलों से अर्चन किया इस बीच बसंत पंचमी तिथि के विषय में जानकारी देते हुए स्वामी जी ने बताया कि नौनिहालों के लिए शिक्षा में प्रवेश हेतु इस दिन का अत्यधिक महत्त्व है,क्योंकि इस दिन विद्यालयों में प्रवेश देने की आदि काल से ही परम्परा रही है तेज दिमाग एवं बुद्धि के विकास हेतु बसंत पंचमी पर ही जनेऊ करवाने की परंपरा है।
उन्होंने बताया कि मां सरस्वती को ज्ञान की देवी माना जाता है।विवेक और बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी के रूप में ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से धरती पर पानी का छिड़काव किया। जैसे ही पानी की बूंदे धरती पर आकर गिरी ठीक उसी वक्त माँ सरस्वती का प्राकट्य हुआ,चार भुजाओं में से एक हाथ में वीणा थी तो दूसरे हाथ में पुस्तक के साथ माला थाम रखी थी।ब्रह्मा जी के वीणा वादन के आग्रह पर जैसे ही माँ भगवती ने वीणा का वादन किया समस्त संसार में भी वाणी की राग छिड़ गई। इस घटना के पश्चात ब्रह्मा जी द्वारा देवी सरस्वती नाम से विख्यात कर दिया। उसी दिन से सरस्वती को ज्ञान और संगीत की देवी के रूप में पूजा जाता है।

INPUT – VINAY CHATURVEDI

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