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दूर छितिज के पार बैठ कर
                 सूरज यों मुस्काता है,
जागो उठो खुदा के बंदों
             कर्म भाव सिखलाता है।
या हो हिन्दू या हो मुस्लिम,
             सबको आशा की किरण            दिखाता है।
दूर छितिज के पार बैठ कर
                सूरज यों मुस्काता है।
भोर हुई और गया अंधेरा
            जीवन ज्योत जागता है।
हर अंधेरे के बाद जगत में,
            फिर उजियारा आता है।
दूर छितिज के पार बैठकर
                सूरज यों मुस्काता है।
या गम हो या खुशी जीवन में,
     बस कुछ पल को ही आता है।
चलते रहो राम के बंदो
          ना रुकना हमें शिखाता है।
चले पवन या छाये घटा,
     कोई इशे रोक ना पाता है।…..
कितनी भी मुस्किल।
                 आये जीवन मे
ना डरना हमे सीखता है,
दूर छितिज के पार बैठकर
                सूरज यों मुस्काता है।
लेखक – रामगोपाल सिंह

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