Waha

Visitors have accessed this post 1003 times.

सोने का पिंजरा बनवाकर, तुमने दाना डाला दोस्त.
हम तो थे नादान पखेरू, अच्छा रिश्ता पाला दोस्त.
हम तो कोरे कागज भर थे, अपना था बस दोष यही,
तुमने पर अखबार बनाकर,हमको खूब उछाला दोस्त.
हमने इस साझेदारी में, अपना सब कुछ फेंक दिया,
तुम तो पक्के व्यापारी थे, कैसे पिटा दीवाला दोस्त.
कल थे एक हमारे आंगन किसने ये इंसाफ किया,
तुमको तो दिल्ली की गलियां, हमको देश निकाला दोस्त.
सच्चाई पर चलते-चलते, उस मंजिल तक जा पहुंचे,
सब लोगों ने पत्थर मारे,तू भी एक उठा ला दोस्त.
वतन बेच कर खा जाते हैं, लोग इसे विश्वास नहीं,
मान जाएगा, तू ले जाकर दिल्ली इसे दिखा ला दोस्त |

सजलकार – प्रमोद रामावत ‘प्रमोद’