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गाजियाबाद : जिस प्रकार मात्र सत्ताऐं अथवा सत्ता धारियों के मुखौटे परिवर्तित कर देने भर से राष्ट्र का चारित्रिक निर्माण नहीं हो जाता, ठीक उसी तरह गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के चेहरे पर लगी भ्रष्टाचार के कलंक की कालिख, मात्र शीर्षस्थ अधिकारियों के फेरबदल करने भर से नहीं धुलने वाली। हकीकत तो यह है कि प्रत्येक दिन दफ्तर खुलते ही यहाँ का हर कर्मचारी, अपने ज़मीर की नीलामी का पट्टा गले में डालकर, बाजार की किसी वस्तु की तरह, अपनी दुकानों में सज जाता है और इन्तजार करने लगता है, इस बाजार में बोली लगाने वाले खरीदार का।
आप कौन हैं… क्या हैं… गरीब हैं… धनवान हैं… वृद्ध हैं… देवांग हैं… काम सही है अथवा शतप्रतिशत गलत ?… कोई, कुछ भी मायने नहीं रखता। यदि कुछ मायने रखता है तो वह है दुकानों में सजे इनके ज़मीर की कीमत का स्तर। फाइल खोलने की … कलम खोलने की … यहाँ तक कि मुंह खोलने की भी इनकी अपनी ही कीमत होती है।
संज्ञान के लिए, यह कोई काल्पनिक अभिव्यक्ति अथवा मिथ्या दोषारोपड़ नहीं अपितु एक वरिष्ठ पत्रकार के साथ जीवंत हुई घटना का कड़वा सच है।
बता दें कि अभी कुछ दिन पूर्व, अखिल भारतीय पत्रकार महासभा के राष्ट्रीय महासचिव एन0के0शर्मा ने अपने भवन के पंजीकरण (रजिस्ट्री) निष्पादन हेतु प्राधिकरण के सम्बन्धित कार्यालय में आवेदन किया था। सम्बन्धित भवन पर प्राधिकरण का कुल बकाया भुगतान करने के साथ ही, समस्त आवश्यक दस्तावेजों को उपलब्ध कराने, उनकी वैद्यता एवं प्रामाणिकता सिद्ध कराने के बाद, गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के सम्बन्धित कर्मचारियों ने उपरोक्त पत्रकार एन0के0 शर्मा के पक्ष में रजिस्ट्री निष्दिपादित तो करवा दी, किन्तु अपना सुविधा शुल्क (रिश्वत) वसूल करने में किसी भी कर्मचारी ने कहीं भी कोई कोताही नहीं बरती। यह ससाक्ष्य, भली प्रकार जानते हुए भी कि रजिस्ट्री करवाने वाला एक सशक्त वरिष्ठ पत्रकार है।
इस प्रक्रिया में रजिस्ट्री के लिए फाइल तैयार करने के नाम पर सम्बन्धित लिपिक (clerk) द्वारा ₹ 25000/-, उप निबन्धन कार्यालय जाकर रजिस्ट्री निष्दिपादित कराने के नाम पर ₹ 2000/-, प्राधिकरण के स्टाम्प विक्रेता ने ₹ 2000/- अतिरिक्त, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी द्वारा उप निबन्धन (रजिस्ट्री) कार्यालय में रजिस्ट्री निष्दिपादित कराने में मदद के नाम पर ₹ 200/- तथा रजिस्ट्री कार्यालय में फोटो खींचने और हस्ताक्षर कराने के नाम पर ₹ 1000/- पत्रकार उपरोक्त से दबाव बना कर वसूल किए गए।
विशेष यह, कि पत्रकार का शोषण मात्र यहीं नहीं रुक गया। रजिस्ट्री निष्दिपादित होने के बाद माननीय सचिव, गा0वि0प्रा0 द्वारा तो भवन का कब्जा पत्र, अविलम्ब ही भवन के मालिक एन0के0शर्मा को उपलब्ध करा दिया गया, परन्तु मौके पर दिए जाने वाले कब्जा पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए सम्बन्धित जे.ई. ₹ 10000/- की मांग कर रहे हैं। वह भी तब, जब कि पत्रकार एन0 के0 शर्मा अपने इस भवन में सन् 2004 से ही सपरिवार, निर्बाध निवास कर रहे हैं और हर प्रकार से आज तक उनका ही इस भवन पर निर्विरोध कब्जा है। प्राधिकरण में साथी कर्मचारियों के समझाने के बावजूद भी सम्बन्धित जे.ई. आज भी ₹ 10000/- के बिना स्थानीय कब्जा पत्र पर हस्ताक्षर करने को तैयार नहीं हैं।
संज्ञान के लिए, अपनी कर्तव्यनिष्ठा का मोल-भाव करते समय लिपिक (clerk) उपरोक्त ने बताया था कि वह इस काम के लिए अन्य आम लोगों से तो पचास हजार से लेकर एक लाख रुपये तक लेते हैं…. क्योंकि तुम किसी जीडीए कर्मी की विशेष सिफारिश पर आये हो, इसलिये तुम्हें कम से कम पच्चीस हजार रुपये तो देने ही पड़ेंगे। अगर तुम्हें सुविधा पूर्वक, आराम से रजिस्ट्री निष्दिपादित करानी है तो पच्चीस हजार की व्यवस्था करके ले आओ… अन्यथा फाइल में कहाँ-क्या अवरोध खड़ा करना है, कहाँ उलझानी है और क्या कमी दिखानी या पैदा करनी है… मैं जानता हूँ। उन्होंने यह भी कहा कि यह पैसे वह अपने लिए नहीं अपितु उन वरिष्ठ अधिकारियों के लिए ले रहे हैं जो कि भवन की रजिस्ट्री निष्दिपादित कराने की अनुमति प्रदान करेंगे

INPUT – MANOJ BHATNAGAR