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सिकंदराराऊ : सोमवार को पापमोचनी एकादशी के अवसर पर उपवास रखकर श्रद्धालुओं ने भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की । इस अवसर पर नर्मदेश्वर महादेव मंदिर पर पंडित सुभाष चंद्र दीक्षित के पावन सानिध्य में धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन किया गया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में भक्तगण मौजूद रहे।
आचार्य सुभाष चंद्र दीक्षित ने एकादशी के महत्व का वर्णन करते हुए कहा कि सनातन धर्म के आदि पंच देवों में भगवान विष्णु व भगवान शिव भी शामिल हैं। ऐसे में जहां भगवान शिव की पूजा के लिए जितनी महत्वपूर्ण प्रदोष है, उतना ही महत्व भगवान विष्णु के लिए एकादशी का दिन माना जाता है। प्रत्येक माह में दो बार आने वाले एकादशी तिथि का हर बार एक विशेष नाम होता है। ऐसे में चैत्र माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पापमोचनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। सनातन धर्म में एकादशी का व्रत अत्यंत विशेष माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। हर एकादशी का जैसा नाम होता है, वह उसी के अनुरूप फल भी प्रदान करती है यानि कहीं न कहीं उसके नाम से जुड़ी रहती है। पापमोचनी एकादशी के संबंध में मान्यता है कि यह पापों से मुक्त करने वाली एकादशी होती है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसके महत्व के संबंध में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने द्वापरयुग में बताया है। मान्यता है कि पापमोचनी एकादशी के दिन व्रत रखने और कथा को सुनने से 1000 गौदान के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही ये भी माना जाता है कि पापमोचनी एकादशी के दिन व्रत रखने से जाने-अंजाने में हुए पाप कर्मों से मुक्ति मिलने के साथ व्रती की मनचाही इच्छा भी पूरी होती है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है जिस एकादशी के व्रत से सभी पापों से मुक्ति मिल जाये उसे पाप मोचनी एकादशी कहा जाता है। एक विक्रमी संवत में आने वाली सभी एकादशियों में यह अंतिम एकादशी है। इसके बाद नया विक्रमी संवत आरंभ हो जाता है। यह होलिका दहन और चैत्र नवरात्रि के उत्सवों के बीच आती है। पापमोचनी एकादशी का व्रत करना अत्यंत शुभ और पुण्यदायक माना जाता है। एकादशी का व्रत भगवान नारायण के निमित्त किया जाता है।
उन्होंने कहा कि इस दिन उपासक सूर्योदय के समय उठते हैं और कुश और तिल से युक्त पानी से स्नान करते हैं। बिना कुछ खाए या सिर्फ पानी पीकर उपवास करना सबसे अच्छा है। हालाँकि, यह सभी के लिए संभव नहीं है, इसलिए गैर-अनाज खाद्य पदार्थ, दूध, मेवा और फल खाकर भी उपवास रखा जा सकता है। अगले दिन भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद व्रत तोड़ा जाता है। पापमोचनी एकादशी के दिन श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए।

INPUT – Vinay Chaturvedi