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सिकंदराराऊ : गुरुवार को नगर व क्षेत्र में परशुराम द्वादशी का पर्व धूमधाम के साथ मनाया गया। इस अवसर पर श्रद्धालुओं द्वारा मंदिरों में पूजा अर्चना के कार्यक्रम आयोजित किए गए।मौहल्ला ब्राह्मणपुरी स्थित श्री नर्मदेश्वर महादेव मंदिर पर शुक्रवार को परशुराम द्वादशी का पर्व मनाया गया। इस अवसर पर धार्मिक अनुष्ठान संपन्न हुआ। मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की गई। मंदिर में भव्य फूल बंगला सजाया गया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु एवं विप्र जन मौजूद रहे । कार्यक्रम का शुभारंभ राष्ट्रीय विप्र एकता मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष मित्रेश चतुर्वेदी ने पूजा अर्चना करके किया ।
उन्होंने कहा कि वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को परशुराम द्वादशी के नाम से जाना जाता है। परशुरामजी भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं, जिनका प्राकट्य अक्षय तृतीया यानी बैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। लेकिन परशुधारी परशुरामजी के रूप में इनका जीवन आरंभ बैशाख शुक्ल द्वादशी को हुआ था। इसलिए इस तिथि की मान्यता भी एकादशी के समान ही है। परशुराम द्वादशी का व्रत निःसंतान दंपत्ति के लिए उत्तम है। ऋषि याज्ञवल्क्य ने एक राजा जो संतान प्राप्ति की इच्छा से वन में तपस्या कर रहा था उसे यह व्रत करने की सलाह दी थी। इस व्रत के पुण्य से उसे पराक्रमी पुत्र की प्राप्ति हुई थी जो इतिहास में नल नामक राजा के नाम से जाना गया। पुराणों में भगवान विष्णु के जितने भी अवतार की चर्चा हुई है, उनमें एक मात्र परशुराम अवतार ही है जो आज भी धरती पर मौजूद है। बाकी जितने अवतार हुए हैं, वह अपने उद्देश्य को पूर्ण करके वापस लौट गए हैं।भगवान परशुराम जी की ऐसी महिमा पुराणों में मिलती है कि यह चिरंजीवी हैं और जब तक सृष्टि रहेगी तब तक इस धरती पर रहेंगे। इनका निवास आज भी महेंद्र पर्वत पर माना जाता है। इन्होंने संपूर्ण धरती को सहस्रबाहु से जीतकर अपने गुरु को दान कर दिया था। इसलिए वह धरती पर नहीं रहते हैं। इनका निवास आज भी महेंद्र पर्वत पर माना जाता है।इनके चिरंजीवी होने के कारण ही इनका जिक्र रामायाण और महाभारत दोनों में ही हुआ है जिनके बीच युगों का अंतर है। भगवान राम के समय त्रेतायुग में इन्होंने शिवजी के धनुष के टूट जाने पर भगवान राम को युद्ध के लिए ललकारा था और जब राम के रहस्य का इन्हें ज्ञान हो गया, तब भगवान राम के कहने पर उनका चक्र धरोहर के रूप में संभाला था। द्वापर में जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण अवतार धारण किया था तब गुरु सांदीपनी के आश्रम में जाकर इन्होंने ही श्रीकृष्ण को उनका सुदर्शन चक्र लौटाया था। इसी चक्र से भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर के अंत में धर्म की स्थापना की थी। भगवान परशुरामजी को उनका अस्त्र परशु भगवान शिव से प्राप्त हुआ था। इसी परशु से इन्होंने एक युद्ध में भगवान गणेशजी का दांत काट दिया था जिसके बाद से गणेशजी एकदंत कहलाने लगे।
इस अवसर पर रमेश चतुर्वेदी, मुनेश चतुर्वेदी, किशन स्वरूप चतुर्वेदी, विनय चतुर्वेदी , विजयवर्ती पाठक, पंकज चतुर्वेदी, नरेश चतुर्वेदी, राजीव चतुर्वेदी ,रितिक पांडेय, शिवहरी शर्मा, माधव भारद्वाज, भार्गव चतुर्वेदी, अनंत चतुर्वेदी, उत्कर्ष पाठक, प्रांजल चतुर्वेदी, सिद्धार्थ चतुर्वेदी , युवराज, आयुष्मान आदि ने अनुष्ठान में भाग लिया।

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