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जब रात हुई तो मुझको सपना आया खेतोँ का

एक शहरी बाबू की आवाज सुनी कौन हो भाई,
कौन हुँ मैं, मैं कौन हुँ
सच में मैं कोई नहीं
मेरी ऑंखें सालों से नहीं
मैंने तेज हवाओं मे कुछ खोया नहीं,
बाढ़ में मेरा कुछ बहा नहीं
सायद मैं कोई नहीं………
दो बैलों की गाड़ी से चलता हुँ
अपनी किश्मत खुद बदलता हुँ
एक अलग दुनिया को मैंने देखा है
मेरी किश्मत को मंडी में तुलते देखा है
सच कहते हो सहरी बाबू
मैं कौन हूँ, कौन हूँ मैं
पवन कुमार
हाथरस, उत्तर प्रदेश 

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