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विलक्षण प्रतिमा के अनूठे संत थे स्वामी करपात्री जी : स्वामी पूर्णानंदपुरीजी महाराज
अलीगढ। सनातन धर्म रक्षा एवं उत्थान के लिए निरंतर कार्यरत एवं अपना जीवन भी बलिदान कर चुके महान संत पूज्य स्वामी श्री करपात्री जी महाराज की पुण्यतिथि पर वैदिक ज्योतिष संस्थान पर श्रद्धांजलि अर्पित की गयी।
बुधवार को वैदिक ज्योतिष संस्थान के प्रमुख स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज की अध्यक्षता में संस्थान के सदस्यों ने करपात्री जी महाराज की प्रतिमा का माल्यार्पण किया इस एवसर पर स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने उनके चरित्र पर प्रकाश डालते हुए बताया कि विलक्षण प्रतिभा के धनी पूज्य संत स्वामी करपात्री जी महाराज का जन्म सावन महीने के शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि 1964 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के ग्राम भटनी में हुआ था। धर्म सम्राट स्वामी श्री करपात्रीजी महाराज एक महान सन्त, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उनका पूरा जीवन भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की प्रतिष्ठापना और स्वत्व जागरण के लिये समर्पित रहा। स्वामी जी ने बताया कि करपात्री जी महाराज का मूल नाम हरि नारायण ओझा था। बिना किसी वर्तन लिए अपने हाथ में भोजन करने की वजह से इनका नाम करपात्री पड़ा। दसनामी परम्परा के संन्यासी बने तब उनका उनका नाम हरिहरानन्द सरस्वती हुआ।पुराण, अरण्यक ग्रंथ, संहिताएँ, गीता रामायण आदि शास्त्रों का विस्तृत ज्ञान होने तथा अद्वितीय विद्वता के कारण उन्हें धर्मसम्राट की उपाधि से संबोधित किया गया। काशी में रहकर नैष्ठिक ब्रम्हचर्य श्री जीवन दत्त महाराज से संस्कृत, षड्दर्शनाचार्य स्वामी श्री विश्वेश्वराश्रम महाराज से व्याकरण शास्त्र, दर्शन शास्त्र, भागवत, न्यायशास्त्र और वेदांत अध्ययन, श्री अच्युत मुनी महाराज से अध्ययन ग्रहण किया।
स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने कहा कि धर्म के साथ साथ राजनीति में भी महाराज जी का विशेष योगदान रहा 1942 के भारत छोड़ो आँदोलन में संतों की टोली बनाकर शोभा यात्रा निकाली और गिरफ्तार हुये। भारत राष्ट्र का निर्माण करने के लिये दूसरा संघठन राजनैतिक दल अखिल भारतीय रामराज्य परिषद की स्थापना की तथा देश भर में पदयात्रा के दौरान गौरक्षा, गौपालन और गौसेवा पर जोर देते थे, गौहत्या प्रतिबंधन के नारे भी पूजा पाठ कर्मकांड में प्रारंभ किये।गौरक्षा आँदोलन में संतों के बलिदान ने स्वामी करपात्री जी महाराज को बहुत क्षुब्ध किया।उन्होंने अपना अधिकांश समय बनारस स्थित अपने आश्रम में ही बिताया और माघ महीने के शुक्ल चतुर्दशी 1982 को केदारघाट वाराणसी में शरीर त्यागा। इस अवसर पर आचार्य गौरव शास्त्री,शिवम शास्त्री,रजनीश वार्ष्णेय,तेजवीर सिंह,जितेंद्र गोविल,शिब्बू अग्रवाल,संजय नवरत्न,पवन तिवारी ब्रजेन्द्र वशिष्ठ सहित अन्य लोग उपस्थित रहे।

INPUT – VINAY CHATURVEDI

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