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कवि नरेंद्र गरल ने सरस्वती वंदना के बाद पढ़ा – हिंदी एक सभ्यता है सद्विचार है । हंस वाहिनी के हाथ का सितार है ।
डॉ उमाशंकर राही ने पढ़ा-
लिया है जन्म मानव का तो इंसान बनकर जी। भले ही एक दिन को जी मगर पहचान बनकर जी। मिला है जन्म भारत में यह सौभाग्य है तेरा,
वतन की आन बनकर जी वतन की शान बनकर जी।
श्री गया प्रसाद मौर्य रजत ने पढ़ा-
राम तेरी लीला को प्रणाम करूं बार-बार ।
जग बिच आप कैसी लीला कर डरे हैं ।
सदियों से पड़े रहे सींखचों के बीच आप,
आप जब चाहें सब ताले तोड़ डरे हैं ।
वहीं गीत सम्राट पवन बाथम ने श्रृंगार गीत पढ़ा- हुस्न जब बेनकाब होता है ।
अपना खाना खराब होता है ।
यूं ना देखो नशीली नजरों से,
झील का पानी शराब होता है।
देवेंद्र दीक्षित शूल ने नेताओं की होली पढ़ी- मोदी जी घर जाकर बोले, सुनो सोनिया भौजी।
बिगड़ रहा है मेरा भतीजा, पूरा है मनमौजी ।
पानी सिर से गुजर रहा है , अब तो इसे पिलाओ डांट।
जा विदेश में गड़बड़ करता, संसद में मारे है आंख ।
आशुकवि अनिल बौहरे ने तीन शब्द मांग कर तत्काल कविता बनाकर सुनाईं तो श्रोता हतप्रभ रह गए।
ओमप्रकाश सिंह ने देशभक्ति की रचना पढ़कर खूब तालियां बटोरीं।
वहीं सत्येंद्र भारद्वाज की भक्ति रचनाओं पर श्रोता झूम उठे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता अशोक कुमार शर्मा एडवोकेट ने की और संचालन देवेंद्र दीक्षित शूल ने किया।
इस अवसर पर डॉ शरीफ अली, जयपाल सिंह चौहान , रंजीत पौरुष, अरविंद भारद्वाज, विजय उपाध्याय, बृजेश पाठक, राधेश्याम बघेल , यादराम बघेल, अजय यादव, हरप्रसाद बघेल, मुनेश भारद्वाज , सुनील शर्मा, सचिन सैनी , शिवकुमार सक्सेना, कुलदीप पचौरी, मयंक भारद्वाज आदि श्रोताओं ने काव्य रसपान किया।

INPUT – VINAY CHATURVEDI

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