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अलीगढ : प्रत्येक व्यक्ति का जन्म अपने जीवन में किसी न किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए होता है,जन्म के बाद जीवनभर अपने नैतिक कार्यों में लगे रहने के बाद अंत में सभी लोग एक निश्चित स्थान पर पंचतत्व में विलीन होते हैं। परन्तु कुछ लोग खुद के लिए जन्म न लेकर दूसरों के हितों और परोपकार के लिए अपने जीवन की अवश्यकताओं को न्योछावर करके हर क्षण समाज सुधारक कार्यों में रहते हैं,उन व्यक्तियों में एक शहर के मुख्य सनातन धर्मगुरु,ज्योतिर्विद एवं महानिर्वाणी अखाडा हरिद्वार से जुड़े संत स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज का अवतरण दिवस एवं आदि शंकराचार्य जयंती महोत्सव उनके शिष्यों द्वारा बड़े धूम धाम के साथ स्वर्ण जयंती नगर स्थित उनके आश्रम पर मनाया गया। प्रातःकाल से ही महाराज श्री के शुभचिंतकों और शिष्यों की शुभकामनाओं और बधाइयों का ताँता सोशल मीडिया से लेकर निज निवास तक लगा रहा जिसका क्रम मध्यरात्रि तक चला।
रविवार को सर्वप्रथम स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज के साथ आचार्य गौरव शास्त्री,शिवम व्यास,माधव शास्त्री,ऋषभ शास्त्री आदि अचार्यों ने संत परंपरा के इष्ट यानि आदि गुरु शंकराचार्य भगवान की प्रतिमा का विधि विधान से पूजन अर्चन एवं माल्यार्पण कर 2531वीं जयंती मनाकर आशीर्वाद लिया उसके बाद अपनी नित्य साधना माँ पराम्बा देवी के श्री चरणों में गुलाब के पुष्पों से अर्चन कर सुदूर क्षेत्रों से आये भक्तों के समक्ष अपने आशीर्वचन दिए। स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने इस अवसर पर कहा कि सनातन वैदिक धर्म में सन्यास लेने की परम्परा का मुख्य उद्देश्य अपने जीवन की सभी भोग विलासताओं की वस्तुओं का त्याग कर प्रति क्षण व्यक्ति के उत्थान हेतु देव आराधना एवं धर्म से विक्षिप्त हो रहे लोगों को सत्मार्ग प्रशस्त करना है। उन्होंने आदि गुरु शंकराचार्य का उदाहरण देते हुए कहा कि अपने जीवन की अल्पायु में ही उन्होंने समस्त भारत देश को एक भगवा ध्वज के तले लाकर रख दिया था,उस समय संचार के विकसित साधन न होने के वावजूद भी इतनी कठिनाइयों से अनेकों विधर्मों के बढ़ते वर्चस्व के चलते सनातन धर्म को जीवंत रखने के लिए चार मठों की स्थापना करना साधारण बात नहीं थी। परन्तु आज के समय में अनेकों सुविधाएँ होने के बाद भी हम लोग भ्रान्तियों में पड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि समय के साथ कुछ बदलाव भी जरूरी हैं प्रकृति के माध्यम से यदि विलासिता की वस्तुएँ उपलब्ध हों तो उन वस्तुओं को बेसहारा और धर्म उत्थान में लगाना चाहिए।संतों को समाज से बिल्कुल अलग भी नहीं रहना चाहिए क्योंकि ग्रहस्थ और संत एक दूसरे के पूरक हैं। आजकल जन्मदिवस,सालगिरह जैसे विशेष अवसर पर आधुनिक पाश्चात्य संस्कृति बढ़ती जा रही है,जहाँ देर रात तक क्लब और होटल में मदिरापान करके लोग जिस अमूल्य दिवस को व्यर्थ कर रहे वहीं भारतीय संस्कृति और सभ्यता के अनुसार इस दिन अपने बड़े बुजुर्गों से आशीर्वाद लेकर दिन की शुरुआत की जाती थी। सांय कालीन बेला में सभी भक्तों ने मिलजुलकर अल्पाहार का आयोजन किया जिसमें रजनीश वार्ष्णेय,नेहा गुप्ता,तेजवीर सिंह,संजय नवरत्न,प्रवीण वार्ष्णेय,उमेश वर्मा,शिब्बू अग्रवाल,पवन तिवारी,निकिता तिवारी,पंकज उपाध्याय,मनोज कुमार मिश्रा आदि लोगों का सहयोग रहा।
INPUT – VINAY CHATURVEDI
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