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अलीगढ। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक 16 दिवसीय पितृपक्ष 17 सितंबर से प्रारंभ हो चुके हैं। शुक्रवार को तृतीया का श्राद्ध संपन्न हुआ इस अवसर पर तर्पण से जुडी जानकारी देते हुए वैदिक ज्योतिष संस्थान के प्रमुख स्वामी पूर्णानन्द पुरी जी महाराज ने बताया कि श्राद्धपक्ष पितृ ऋण उतारने का सबसे पावन अवसर होता है।देवकार्य से भी ज्यादा महत्वपूर्ण पितृ कार्य माना गया है अतः देवताओं से पहले पितरों को तृप्त करना आवश्यक होता है। पितरों का श्राद्ध करने से कुल में वीर,निरोगी,शतायु एवं श्रेय प्राप्त करने वाली संततियां उत्पन्न होती हैं।
स्वामी जी ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार पुत्र ही पिता को पुं नामक नरक से मुक्ति दिलाता है। इसलिए पुत्र को ही श्राद्ध, पिंडदान का अधिकारी माना गया है।पुत्र के अभाव में पुत्री का पति यानी दामाद, पुत्री का पुत्र यानी दोहता, भ्राता आदि को श्राद्ध कर्म का अधिकारी माना गया है। मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक कर्मानुसार कई प्रकार के पाप और ऋण एकत्र हो जाते हैं।मान्यता है कि तीन तरह के ऋण को चुकता कर देने से मनुष्य को बहुत से पाप और संकटों से छुटकारा मिल जाता है,इनमें देव ऋण,ऋषि ऋण और पितृ ऋण आते हैं साथ ही ब्रहमा के ऋण का भी उल्लेख मिलता है। इन ऋणों को न चुकाने पर त्रिविध ताप अर्थात सांसारिक दुख, दैवीय दुख और कर्म के दुख भोगने पड़ते हैं। पितृ ऋण को चुकाने का एक मात्र श्रेष्ठ साधन है किसी योग्य ब्राह्मण द्वारा किया गया तर्पण और श्राद्ध।
वैदिक ज्योतिष संस्थान पर विश्व कल्याण की भावना एवं सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्,अर्थ – “सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े की परिकल्पना के साथ स्वामी पूर्णानन्द पुरी जी महाराज के सानिध्य में वेदपाठी ब्राह्मणों द्वारा नित्य पित्रों की प्रसन्ना के लिए तर्पण श्राद्ध में कैलाशी गौरव शास्त्री, ओम शास्त्री, ऋषभ शास्त्री, रवि शास्त्री, मनोज मिश्रा, गौरव वेदपाठी,दीपक पंडित,पंडित गिर्राज किशोर भारद्वाज, माधव, अंकुश, आदि सम्मिलित रहें।
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