Visitors have accessed this post 357 times.

आज हम बात करेंगे हाथरस के रहने वाले काका हाथरसी के बारे में । हंसी का पर्याय माने जाने वाले काका हाथरसी का  जन्म 18 सितंबर 1906 को उत्तर प्रेदश के हाथरस में जन्म हुआ था। जब काका 15 साल के थे तब उनके पिता का प्लेग बीमारी से देहांत हो गया था । और उनकी मां काका जी को लेकर अपने मायके अलीगढ़ जनपद के इगलास कस्बे चली गईं। काका हाथरसी जी ने अपनी पढ़ाई इगलास में पूरी की थी । काका हाथरसी जी की पहली नौकरी इगलास में ही लगी थी जहां उन्हें अनाज की बोरियों व उनके वजन का हिसाब किताब रखना होता था। काका को पहली नौकरी में हर महीने छह रुपये तन्खा मिलता थी । काका हाथरसी के नाम से पुरस्कार
हर साल काका हाथरसी पुरस्कार ट्रस्ट प्रतिवर्ष एक कवि को काका हाथरसी पुरस्कार से सम्मानित करता है। देश के प्रख्यात हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा, व्यंग्यकार अशोक चक्रधर, हुल्लड़ मुरादाबादी, सुरेन्द्र दुबे,डॉ.सरोजनी प्रीतम, व्यंग्यकार राकेश शरद, मधुप पाण्डे, तेजनारायण शर्मा बेचैन आदि को पुरस्कार मिल चुका है। काका को अपनी दाढ़ी से बहुत प्यार था, उन्होंने इस पर एक कविता भी लिखी थी …

काका’ दाढ़ी साखिए, बिन दाढ़ी मुख सून।
ज्यों मसूरी के बिना, व्यर्थ देहरादून।
व्यर्थ देहरादून, इसी से नर की शोभा।
दाढ़ी से ही प्रगति, कर गए संत विनोबा।।
मुन वशिष्ठ यदि दाढ़ी, मुँह पर नहीं रखाते।
तो क्या भगवान राम के गुरु बन जाते?
1985 में उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने ‘पद्मश्री’ की उपाधि से नवाजा। काका ने फ़िल्म ‘जमुना किनारे’ में अभिनय भी किया था। काका हाथरसी के नाम पर ही कवियों के लिये ‘काका हाथरसी पुरस्कार’ और संगीत के क्षेत्र में ‘काका हाथरसी संगीत’ सम्मान भी आरम्भ किये। काका हाथरसी की लिखी कुछ|

काका हाथरसी जी ने पुलिस के ऊपर भी अन्य रचनाएँ लिखी ।

पड़ा – पड़ा क्या कर रहा, रे मूरख नादान
दर्पण रख कर सामने , निज स्वरूप पहचान
निज स्वरूप पह्चान , नुमाइश मेले वाले
झुक – झुक करें सलाम , खोमचे – ठेले वाले
कहँ ‘ काका ‘ कवि , सब्ज़ी – मेवा और इमरती
चरना चाहे मुफ़्त , पुलिस में हो जा भरती
कोतवाल बन जाये तो , हो जाये कल्यान
मानव की तो क्या चले , डर जाये भगवान
डर जाये भगवान , बनाओ मूँछे ऐसीं
इँठी हुईं , जनरल अयूब रखते हैं जैसीं
कहँ ‘ काका ‘, जिस समय करोगे धारण वर्दी

ख़ुद आ जाये ऐंठ – अकड़ – सख़्ती – बेदर्दी
शान – मान – व्यक्तित्व का करना चाहो विकास
गाली देने का करो , नित नियमित अभ्यास
नित नियमित अभ्यास , कंठ को कड़क बनाओ
बेगुनाह को चोर , चोर को शाह बताओ
‘ काका ‘, सीखो रंग – ढंग पीने – खाने के
‘ रिश्वत लेना पाप ‘ लिखा बाहर थाने के

मुर्ग़ी और नेता…

नेता अखरोट से बोले किसमिस लाल
हुज़ूर हल कीजिये मेरा एक सवाल
मेरा एक सवाल, समझ में बात न भरती
मुर्ग़ी अंडे के ऊपर क्यों बैठा करती

नेता ने कहा, प्रबंध शीघ्र ही करवा देंगे
मुर्ग़ी के कमरे में एक कुर्सी डलवा देंगे

जम और जमाई

बड़ा भयंकर जीव है , इस जग में दामाद
सास – ससुर को चूस कर, कर देता बरबाद
कर देता बरबाद , आप कुछ पियो न खाओ
मेहनत करो , कमाओ , इसको देते जाओ
कहॅं ‘ काका ‘ कविराय , सासरे पहुँची लाली
भेजो प्रति त्यौहार , मिठाई भर- भर थाली
लल्ला हो इनके यहाँ , देना पड़े दहेज
लल्ली हो अपने यहाँ , तब भी कुछ तो भेज
तब भी कुछ तो भेज , हमारे चाचा मरते

रोने की एक्टिंग दिखा , कुछ लेकर टरते
‘ काका ‘ स्वर्ग प्रयाण करे , बिटिया की सासू
चलो दक्षिणा देउ और टपकाओ आँसू
जीवन भर देते रहो , भरे न इनका पेट
जब मिल जायें कुँवर जी , तभी करो कुछ भेंट
तभी करो कुछ भेंट , जँवाई घर हो शादी
भेजो लड्डू , कपड़े, बर्तन, सोना – चाँदी
कहॅं ‘ काका ‘, हो अपने यहाँ विवाह किसी का
तब भी इनको देउ , करो मस्तक पर टीका
कितना भी दे दीजिये , तृप्त न हो यह शख़्श
तो फिर यह दामाद है अथवा लैटर बक्स ?

अथवा लैटर बक्स , मुसीबत गले लगा ली
नित्य डालते रहो , किंतु ख़ाली का ख़ाली
कहँ ‘ काका ‘ कवि , ससुर नर्क में सीधा जाता
मृत्यु – समय यदि दर्शन दे जाये जमाता
और अंत में तथ्य यह कैसे जायें भूल
आया हिंदू कोड बिल , इनको ही अनुकूल
इनको ही अनुकूल , मार कानूनी घिस्सा
छीन पिता की संपत्ति से , पुत्री का हिस्सा
‘ काका ‘ एक समान लगें , जम और जमाई
फिर भी इनसे बचने की कुछ युक्ति न पाई

input: brijmohan thinua

यह भी पढ़े : हाथरस के NINE to 9 बाजार में क्या है खास

अपने क्षेत्र की खबरों के लिए डाउनलोड करें TV30 INDIA एप

http://is.gd/ApbsnE

sasni new wave