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पाटन। स्वतंत्रत संग्राम सेनानियों की जब भी चर्चा होगी तब अमर शहीद राजा राव राम बक्श सिंह का नाम सबसे पहले लिया जाता है। जनपद के बैसवारा क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले राजा राव राम बक्श सिंह के नाम से अंग्रेजी हुकूमत कांपती थी, जिनके इरादों को राजा राव राम बक्श सिंह ने चकनाचूर कर दिया। ब्रिटिश शासकों ने राव राम बक्श सिंह को फांसी की सजा दी। फांसी देने के दौरान दो बार रस्सी भी टूटी। अंततः उन्हे फांसी दे दी गयी। आज देश के इस सपूत का 163वां बलिदान दिवस है। क्षेत्र व आसपास जनपदों के तमाम समाजसेवी, राजनेता व साहित्यकार बक्सर स्थित शहीद पार्क में अमर शहीद को श्रद्धा सुमन अर्पित करेंगे।

अंग्रेजों की निगाह थी डौड़िया खेड़ा पर

आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के छक्के उड़ाने वाले राजा राव राम बक्श सिंह ने 1857 में हुयी क्रांति के दौरान अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया। उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत की जुल्मों शितम के खिलाफ क्षेत्र के शुरमाओं को एकत्र किया। उनका जन्म बैसवारा क्षे़त्र के डौड़िया खेड़ा में हुआ था। जब उन्होंने राज पाठ संभाला था। उस समय अंग्रेज शासक अपने राज्य का विस्तार कर रहे थे। ऐसे में राजा राव रामबक्श सिंह ने अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया। लखनऊ, उन्नाव, रायबरेली, कानपुर के हजारों किसानों, युवाओं व मजदूरों को जोड़ कर क्रांति की ऐसी मशाल जलाई कि अंग्रेजों के छक्के छूट गये। जिसमें कानपुर, झांसी, लखनऊ के राजाओं ने एक साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका था।

अपनो ने ही लालच में की मुखबिरी

स्वाधीनता के लिये छेड़े गये संग्राम के लिये रानी लक्ष्मी बाई, बहादुर शाह जफर, नाना साहब, तात्या टोपे के साथ राजा राव राम बक्श सिंह भी शामिल हो गये। जिसमें 31 मई 1857 को एक साथ अंग्रेजों की छावनी में हमला करना था। परंतु इसके पहले हमला कर पाते एक विस्फोट होने से अंग्रेज सतर्क हो गये। कानपुर में नाना साहब के अधिकार के बाद अंग्रेज वहां से भाग कर बक्सर आ गये। जहां पर उनका सामना राजा राव राम बक्श सिंह से हुआ। बक्सर में अंग्रेज गंगा नदी के किनारे स्थित ढिल्लेश्वर शिव मंदिर में छिप गये। मौके पर मौजूद ठाकुर यदुनाथ सिंह ने अंग्रेज़ों को मंदिर से बाहर आने के लिये कहा। परंतु अंग्रेजों ने यदुनाथ सिंह को गोली मार दी। जिससे क्रोधित लोगों ने मंदिर में आग लगा दी। जिससे सभी अंग्रेज जल कर मर गये। परंतु इस हादसे के बाद तीन अंग्रेज बच गये थे जिन्होंने गंगा में कूद कर अपनी जान बचायी। जिन्होंने लखनऊ पहुंचकर पूरी बात अंग्रेज अधिकारियों को बतायी। जहां अंग्रेजों ने भारी भरकम फौज के साथ राजा राव राम बक्श सिंह के किले पर हमला बोल दिया। राजा राव राम बक्श सिंह ने अंग्रेजों का बहादुरी से मुकाबला किया। परंतु अंग्रेजों के गोला बारूद व सामरिक शक्ति के सामने से पीछे हटना पड़ा।

राजा राव राम बक्श सिंह व उनके जवान छिप.छिपकर अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला युद्व कर उनके दंभ को चकनाचूर करने का काम किया। परंतु अपने बीच के कुछ गद्दारों ने अंग्रेजों के हाथों बिककर राव राम बक्श सिंह की मुखबिरी कर दिया और उनके ठिकानों की जानकारी अंग्रजों को दे दी। अंग्रेजों ने राव राम बक्श सिंह को काशी में गिरफ्तार कर लिया।

फांसी की रस्सी दो बार टूटी थी

दिखावटी अदालत व झूठी गवाही के बल पर राजा राव राम बक्श सिंह को फांसी की सजा दी गयी। जहां 28 दिसम्बर 1861 को उसी बरगद के पेड़ पर राव राम बक्श सिंह को फांसी पर लटका दिया गया था, जिस स्थान पर अंग्रेजों को जलाया गया था। राव राम बक्श सिंह माॅ चन्द्रिका देवी के भक्त थे। माना जाता है कि माँ चंदिका देवी की कृपा के कारण अंगे्रजों द्वारा फांसी देने के दौरान दो बार रस्सी टूट गयी थी। आज राव रामबक्श सिंह का नाम जनपद में आदर से लिया जाता है। राव रामबक्श सिंह भले ही आज हमारे बीच न हो परंतु डौड़िया खेड़ का किला आज लोगों के लिये तीर्थ से कम नहीं है। जहां हर वर्ष होने वाले मेले में दूर-दूर से समाजसेवी, राजनीतिज्ञ, साहित्यकार व लोकगायक अमर शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित करने आते हैं।

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