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कासगंज : कवि बृजलाल विमल की पुण्य स्मृति में एक कवि सम्मेलन का आयोजन आचार्य अवनीश वशिष्ठ के सानिध्य तथा कवि दिनेश चंद्र जौहरी की अध्यक्षता में हिंदी प्रोत्साहन समिति उप्र के सहयोग से ब्रह्मपुरी कासगंज में संपन्न हुआ ।
जिसका हास्य विनोदमय संचालन देवेंद्र दीक्षित शूल ने किया । वहीं कवियों का सम्मान आयोजक नीरज कुमार भारद्वाज व माधव शर्मा आदि ने किया। कवयित्रियों का सम्मान श्रीमती संजू शर्मा व मंजू शर्मा और प्रेरणा शर्मा ने किया ।
कुमारी उन्नति भारद्वाज की सरस्वती वंदना के बाद पटियाली से पधारे कवि शरदकांत मिश्र ने पढ़ा -“शब्द छोटा इस जगत में इस कदर देखा नहीं ।
राह में मां से बड़ा भी हमसफर देखा नहीं।
कुमारी गौरी पांडे ने पढ़ा- हम तो तुम्हारी याद में तरसते हैं बाबूजी , यह नैना आज भी बरसते हैं बाबूजी ।
श्री कृष्ण चंद्र शर्मा चंचल कासगंज मे
ने पढ़ा-” भूमि दान हो रक्तदान हो गऊ दान भी तो होगा।
बेटी नहीं बची तो मित्रों कन्यादान नहीं होगा।
बरेली से पधारे डाॅ कमल कांत तिवारी ने पढ़ा-“अरि के दुष्ट इरादों से भारत नीलाम नहीं होगा।
यह कितने भी जतन करे पर देश गुलाम नहीं होगा।
हम अपने पर आए तो फिर युद्ध विराम नहीं होगा।
रावलपिंडी और करांची तक विश्राम नहीं होगा ।
कवयित्री श्रीमती स्नेहा शर्मा हाथरस ने पढ़ा-“दिल को फसलें बहारा भी मिल जाएगा । खुशबुओं का फवारा भी मिल जाएगा ।
वहीं कुमारी उन्नति भारद्वाज ने पढ़ा-” सामने समस्या जटिल किंतु निश्चित ही एक दिन हल होगा।
कुरावली मैनपुरी के कवि सुरेश चौहान नीरव ने अपने गीतों से समा बांधा -“तुम चले गए तो साथ तुम्हारे इन होठों के गीत गए ।
मैं हार गया तुम जीत गए।
संचालक व्यंग्यकार देवेंद्र दीक्षित शूल ने संसद व विधान मंडलों में होने वाली हाथापाई पर व्यंग कसा-” संसद व विधान मंडलों में हाथापाई इस बात का सबूत है कि हमारे सांसदों एवं विधायकों में केवल बुद्धि नहीं बाहुबल भी अकूत है ।
अध्यक्षता कर रहे कवि दिनेश चंद्र जौहरी एडवोकेट ने पढ़ा-“सद्गुणों का सदा आचरण कीजिए। हर द्वेषभाव को अब समन कीजिए।
इनके अलावा रामखिलाड़ी अमांपुर ‘श्रीमती प्रेरणा शर्मा व नीरज भारद्वाज ने भी काव्य पाठ किया।
इस अवसर पर उपरोक्त के अलावा सचिन पुंडीर ,सत्य प्रकाश ‘आचार्य किशोरीलाल अमांपुर ,कवि विमल जी के परिवारी जन एवं ब्रम्हपुरी के लोगों ने कई घंटों काव्य रसपान किया ।
आचार्य श्री अवनीश वशिष्ठ जी ने सभी कवियों की कविताओं की प्रशंसा करते हुए कवियों को शब्दों का भंडार बताते हुए उनकी कविताओं से शिक्षा ग्रहण करने का सभी श्रोताओं से अनुरोध किया।

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