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हाथरस : होली के पूर्व के आठ दिन यानि फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तक अशुभ माना जाता है, अष्टमी तिथि से शुरू होने के कारण इन दिनों को होलाष्टक कहा जाता है,शास्त्रोक्त मान्यता है कि इन आठ दिनों में भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए हिरण्यकश्यप ने तमाम शारीरिक प्रताड़नाएं दीं। इन दिनों में शुरू किए गए कार्यों से कष्ट की प्राप्ति होती है इसलिए धर्मशास्त्रों में वर्णित 16 संस्कार भी होलाष्टक में नहीं किए जाते है,होलिका दहन के साथ ही होलाष्टक का समापन होता है।
होलिका के होलाष्टक के विषय में यह जानकारी वैदिक ज्योतिष संस्थान के स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने दी। उन्होंने बताया कि इस बार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि 16 मार्च को रात्रि 09:38 मिनट से 17 मार्च प्रातः 09:52 मिनट तक रहेगी। ऐसे में होलाष्टक 17 मार्च से प्रारंभ होकर 24 मार्च होलिका दहन के साथ समाप्त होगा और 25 मार्च को रंग वाली होली धुलेंडी मनाई जाएगी।
स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने खरमास के विषय में जानकारी देते हुए कहा कि वर्षभर में दो बार खरमास आते हैं,जिनमें एक धनु का तथा दूसरा मीन का खरमास होता है 14 मार्च यानि गुरुवार से सूर्य के मीन राशि में गोचर करने से ग्रीष्मकालीन खरमास प्रारंभ हो चुके हैं,जो कि एक महीने यानि 13 अप्रैल को सूर्य के मेष राशि में गोचर तक रहेगा।
स्वामी जी के अनुसार खरमास के दिनों में सूर्य बृहस्पति की राशि में प्रवेश करके अपने गुरु की सेवा पर ध्यान केंद्रित करते है,जिससे सांसारिक कार्यों पर उसका प्रभाव कम हो जाता है। इस कम प्रभाव के कारण खरमास में किसी भी प्रकार के शुभ और मांगलिक कार्यों जैसे विवाह, सगाई,गृह निर्माण,गृहप्रवेश,मुंडन और जनेऊ आदि संस्कार नहीं किये जाते। लेकिन इन दिनों भगवान सूर्य की विशेष पूजा साथ ही तीर्थ यात्रा भ्रमण कर सकते हैं।
स्वामी जी ने बताया कि 13 अप्रैल को खरमास समाप्त होने के बाद भी विवाह का कोई शुभ मुहूर्त 17 अप्रैल तक नहीं है उसके बाद अप्रैल में 18,20,21,22,23,25,26 तक विवाह के मुहूर्त देखने को मिलेंगे परन्तु गृहप्रवेश और मुंडन संस्कार के लिए कोई मुहूर्त नहीं मिलेगा।

INPUT – VINAY CHATURVEDI

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