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हाथरस : फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाता है वहीं अगले दिन यानी चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को रंगों वाली होली धुलैंडी खेली जाती है। इस बार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 24 मार्च प्रातः 09:55 मिनट से आरंभ होकर 25 मार्च को दोपहर 12:29 मिनट तक रहेगी। होलिका दहन के बारे में यह जानकारी वैदिक ज्योतिष संस्थान के प्रमुख स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने दी। उन्होंने बताया कि धर्मसिन्धु के अनुसार सा प्रदोष व्यापिनी भद्रा रहित ग्राह्या ।। यदि प्रदोष के समय भद्रा हो तो दूसरे दिन प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा में होलिका दहन होता है। यदि दूसरे दिन प्रदोष समये पूर्णिमा न हो तो भद्रा की समाप्ति पर पहले दिन होलिका दहन करें वहीं यदि भद्रा निशीथ के बाद तक व्याप्त हो तो भद्रा का मुख छोड़कर होलिका दहन करना चाहिए। परन्तु इस बार भी होलिका दहन के दिन रविवार को चतुर्दशी तिथि समाप्त होते ही पूर्णिमा के साथ भद्रा का साया प्रातः 09:55 मिनट से प्रारंभ हो रहा है जो कि रात्रि 11:12 मिनट तक रहेगा।भद्राकाल को शुभ नहीं माना जाता है और इस दौरान किसी भी तरह का पूजा-पाठ व शुभ काम करना वर्जित होता है अतः भद्राकाल की समाप्ति के बाद ही होलिका दहन किया जा सकता है। होलिका दहन का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त शास्त्रानुसार रात्रि 11:12 मिनट पर होगा लोकाचार के अनुसार 11:12 से लेकर सोमवार की प्रातः सूर्योदय से पूर्व तक होलिका दहन कर सकते है
होलिका दहन के महत्त्व को लेकर स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने बताया कि भक्त प्रहलाद राक्षस कुल में जन्म लेकर भी भगवान नारायण के अनन्य भक्त थे । हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को अनेकों प्रकार के जघन्य कष्ट दिए। उनकी बुआ होलिका जिसको ऐसा वस्त्र वरदान में मिला हुआ था जिसको पहन कर आग में बैठने से उसे आग नहीं जला सकती थी। होलिका भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए वह वस्त्र पहनकर उन्हें गोद में लेकर आग में बैठ गई । भक्त प्रह्लाद की विष्णु भक्ति के कारण होलिका जल गई,और भक्त प्रहलाद सुरक्षित रहे तब से शक्ति पर भक्ति की जीत के रूप में यह पर्व मनाया जाने लगा।
स्वामी जी के अनुसार इस बार धुलेंडी पर वर्ष पहला चंद्र ग्रहण लगने जा रहा है। वर्ष 1924 के बाद लगभग 100 वर्ष उपरांत होली पर प्रातः 10:23 मिनट से दोपहर 03:02 मिनट तक लगभग चार घंटे का उपच्छाया चंद्र ग्रहण देखने को मिलेगा जो कि उत्तर एवं पूर्वी एशिया,यूरोप,उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका,प्रशांत महासागर,ऑस्ट्रेलिया,अफ्रीका,अटलांटिक,आर्कटिक आदि जगहों पर देखा जाएगा परन्तु भारत में प्रभावहीन होने की वजह से इसके सूतक भी मान्य नहीं रहेंगे।

INPUT  – VINAY CHATURVEDI

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