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हाथरस : वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान परशुराम की जयंती के रूप में मनाया जाता है जिसे अक्षय तृतीया के नाम से भी जाना जाता है। ज्योतिष शास्त्र में भी इस तिथि का विशेष महत्व है।मान्यता है कि इस अबूझ मुहूर्त की तिथि पर बिना मुहूर्त का विचार किए सभी प्रकार के शुभ कार्य संपन्न किये जा सकते हैं साथ ही इस दिन कोई भी शुभ मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, सोने-चांदी के आभूषण.घर,भूखंड या वाहन आदि की खरीदारी से सम्बंधित कार्य किए जा सकते हैं और वह कभी नष्ट नहीं होता।
वैदिक ज्योतिष संस्थान के प्रमुख स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने अक्षय तृतीया के विषय में जानकारी देते हुए कहा कि इस बार वर्ष अक्षय तृतीया का पर्व शुक्रवार, 10 मई को मनाया जाएगा। वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 10 मई प्रातः 4:17 मिनट पर प्रारंभ होगी और 11 मई को प्रातः 02: 50 मिनट तक रहेगी। ऐसे में 10 मई को अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाएगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन सूर्य अपनी उच्च राशि मेष में रहते हैं, साथ ही इस तिथि पर चंद्रमा वृषभ राशि में मौजूद होते हैं। माना जाता है इस दौरान सूर्य और चंद्रमा दोनों ही सबसे ज्यादा चमकीले यानी सबसे ज्यादा प्रकाश उत्सर्जित करते हैं। इस कारण ज्यादा से ज्यादा प्रकाश पृथ्वी की सतह पर रहता है इसलिए इस अवधि को सबसे शुभ समय माना जाता है।
स्वामी जी ने बताया कि इस तिथि पर पर मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्त्व है,अक्षय तृतीया तिथि पर भगवान विष्णु के छठे अवतार चिरंजीवी भगवान श्री परशुराम जी की जयंती भी मनाई जाती है इसलिए इसे चिरंजीवी तिथि भी कहा जाता है,इस तिथि को अनेकों कारणों से विशेष माना जाता है,अक्षय तृतीया पर ही सतयुग और त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था एवं इस तिथि पर ही ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव हुआ था।
अक्षय तृतीया के दिन ही वेद व्यास और श्रीगणेश द्वारा महाभारत ग्रंथ के लेखन का प्रारंभ किया गया था। तथा इस दिन ही महाभारत के युद्ध का समापन हुआ था।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया की तिथि पर ही मां गंगा का पृथ्वी में आगमन हुआ था।

INPUT – VINAY CHATURVEDI

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