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हाथरस : सनातन धर्म में पूर्वजों के लिए समर्पित श्रद्धा के महापर्व पितृपक्ष के पावन दिन चल रहे हैं।पितृ पक्ष में किये गए तर्पण श्राद्ध से प्रसन्न होकर हमारे पूर्वज मनचाहा वरदान देते हैं। प्रायः श्राद्ध तर्पण तो अधिकांश लोग करते हैं परन्तु उसके पीछे का महत्त्व कम लोग ही जानते हैं। गौरव शास्त्री के अनुसार पितरों की संतुष्टि के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक किये जाने वाले तर्पण, ब्राह्मण भोजन, दान आदि कर्मों को श्राद्ध कहा जाता है। इसे पितृयज्ञ भी कहते हैं। श्राद्ध के द्वारा व्यक्ति पितृऋण से मुक्ति मिलती है लेकिन कई बार विधिपूर्वक श्राद्ध न करने से पितृ अप्रसन्न होकर श्राप भी दे देते हैं।
शास्त्रों में श्राद्ध के कई प्रकार बताये गए हैं,जिनमें नित्य श्राद्ध नित्य प्रतिदिन किये जाते हैं, नैमित्तिक या एकोदिष्ट श्राद्ध केवल एक व्यक्ति के उद्देश्य से किया जाता है।यह भी विश्वदेव रहित होता है, इसमें एक पिण्ड, एक अर्ध्य, एक पवित्रक होता है,काम्य श्राद्ध किसी कामना पूर्ति के उद्देश्य से किया जाता है,वृद्धि अथवा नान्दी श्राद्ध मांगलिक कार्यों में किया जाता है, पावर्ण श्राद्ध भाद्रपद कृष्ण पक्ष के पितृपक्ष, प्रत्येक मास की अमावस्या आदि पर किये जाते हैं,सपिण्डन श्राद्ध में प्रेत पिंड का पितृ पिंडों में सम्मलेन किया जाता है, उसे सपिण्डन श्राद्ध कहा जाता है।गोष्ठी सामूहिक रूप से किया जाता है, शुद्धयर्थ शुद्धि के उद्देश्य से किये गए श्राद्ध शुद्धयर्थ कहे जाते हैं।षोडश संस्कारों में किये जाने वाले श्राद्ध कर्मांग श्राद्ध तथा देवताओं की संतुष्टि के उद्देश्य से किये जाने वाले श्राद्ध दैविक श्राद्ध कहलाते हैं।
यात्रा के उद्देश्य से जो श्राद्ध किये जाते हैं उन्हें यात्रार्थ श्राद्ध कहते हैं जबकि शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक पुष्टता के लिये किये जाने वाले श्राद्ध पुष्टयर्थ श्राद्ध कहलाते हैं।श्राद्ध तर्पण करने वाला व्यक्ति कभी आभाव से ग्रसित नहीं होता इस लिए श्राद्ध कर्म प्रयत्न पूर्वक करना चाहिए।

INPUT – VINAY CHTAURVEDI

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