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गठबंधन का गणित कभी पास हो जाता है तो कभी फेल। हर चुनाव में किसी न किसी दल ने आपस में दोस्ती की है।लेकिन अलीगढ़ मंडल के मतदाताओं को यह दोस्ती कभी रास आई है तो कभी रास नहीं आई है। इसलिए सियासी दलों को अपनी दोस्ती का कभी मीठा फल मिला है तो कभी खट्टा।आइए 2004 से 2014 तक गठबंधन के नतीजों पर एक नजर डालते हैं-
2014: एक भी सीट पर नहीं गली कांग्रेस रालोद की दाल-पिछले चुनावों में कांग्रेस और रालोद का गठबंधन हुआ। देश में उस समय मोदी लहर चल रही थी। जिसके चलते अलीगढ़ मंडल की दोनों लोकसभा सीटों अलीगढ़ हाथरस पर न तो रालोद खाता खुला और नहीं कांग्रेस का। अलीगढ़ में भाजपा के सतीश गौतम ने एकतरफा जीत हासिल की।वही हाथरस में भाजपा के राजेश दिवाकर ने बड़ी जीत हासिल की।
2009: रालोद को रास आई भाजपा की दोस्ती-
2009 में राष्ट्रीय लोकदल और भारतीय जनता पार्टी में गठबंधन हुआ। यह गठबंधन रालोद को खूब रास आया और हाथरस सीट पर रालोद की सारिका सिंह बघेल ने बड़ी जीत हासिल की। वहीं अलीगढ़ में गठबंधन का जादू नहीं चल सका और बसपा की राजकुमारी चौहान निर्वाचित हुई।
2009: नहीं चली कल्याण मुलायम की दोस्ती
2009 में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और कल्याण सिंह की जन क्रांति पार्टी में गठबंधन हुआ।उस समय कल्याण सिंह भाजपा छोड़ चुके थे। लेकिन यह दोस्ती अलीगढ़ मंडल के मतदाताओं को रास नहीं आई। जिसके नतीजे हाथरस और अलीगढ़ दोनों ही जगहों पर दोनों में से किसी भी पार्टी के उम्मीदवार का खाता नहीं खुला।
2004: नहीं चला मुलायम और छोटे चौधरी का जादू
उत्तर प्रदेश में सबसे हिट गठबंधन सपा और रालोद का माना जाता है। लेकिन अलीगढ़ मंडल के मतदाताओं को यह दोस्ती रास नहीं आई। दोनों ही जगहों पर किसी भी पार्टी का खाता नहीं खुला। हाथरस में कांग्रेस के किशन लाल दिलेर ने जीत हासिल की वही अलीगढ़ में विजेंद्र सिंह ने जीत हासिल की।

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