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घाटमपुर । अर्से से मिट्टी के खनन पर लगी रोक से मिट्टी के बर्तनों का काम करने वाले कुम्हार परेशान हैं। मिट्टी के अभाव से इन दिनों कच्चे घड़ों और सुराहियों की बढ़ी मांग पूरी नहीं हो पा रही है। वैसे वर्तमान में पांच लीटर पानी क्षमता वाली सुराही सौ रुपये में मिल रही है। दो तीन लीटर वाले घड़े पचास रुपये में मिल रहे हैं। अधिक पानी वाले घड़े दो सौ से तीन सौ रुपये में बिक रहे हैं। गांधी नगर , पचखुरा आदि स्थानों पर कुम्हारों के काफी संख्या में निवास हैं और यहीं अधिकांश मिट्टी के बर्तनों समेत अन्य सजावटी सामग्री का मिट्टी से निर्माण किया जाता है। गांधी नगर में मिट्टी से विभिन्न सामग्रियों का निर्माण कर रहे मुन्नीलाल ने बताया कि मिट्टी का अभाव हम कुम्हारों के लिए पिछले पांच छह वर्षो से समस्या बन गया है। समाजवादी पार्टी के शासन में मिट्टी खनन पर लगी रोक से हम लोगों को मिट्टी नहीं मिल पाती है। इन दिनों चोरी छिपे किसी तरह रात में ट्रैक्टर भर मिट्टी मिलती है, उसकी कीमत सात से आठ हजार रुपये देनी पड़ रही है। इस पर भी यदि पुलिस पीछे से आ गयी तो मिट्टी बाद में उतारते हैं, नकद भुगतान उन्हें पहले करना पड़ जाता है। इस स्थिति में मिट्टी के घड़े, सुराही आदि अन्य सामग्री सस्ती कैसे मिल सकती हैं। इन दिनों घड़ों और सुराहियों की मांग बेतहाशा बढ़ गयी है और गांधी नगर में बसे लगभग चालीस कुम्हार परिवारों के पास मिट्टी का एक धेला नहीं है जिससे वे सुराही, घड़ा बना सकें। इस स्थिति में जिसके पास मिट्टी होती है, वह भी किलो के हिसाब से मिट्टी बेचता है। अब एक किलो मिट्टी से यदि घड़ा बना है तो उसकी मिट्टी ही दस रुपये कीमत की लग जाती है। उसके बाद उसे सुखाने और आग से तपाने में ईधन आदि का खर्च अलग से आता है। गांधी नगर कोरियाँ में गणेश लक्ष्मी का काम करने वाले कुम्हार ललित ने बताया कि अर्सा हो गया यही काम करते, अब दूसरा काम करना अच्छा भी नहीं लगता है। बच्चे अब पुश्तैनी काम नहीं करेंगे। सरकार भी कुम्हार समाज से रुष्ट चल रही है अन्यथा मिट्टी खनन पर लगी रोक हटा ली जाती। खनन पर रोक बदस्तूर जारी है और इसका खामियाजा कुम्हारों को उठाना पड़ रहा है, क्योंकि मौरंग, बालू आदि खनन के बाद बाजार में धड़ल्ले से बिक रही है, सिर्फ मिट्टी को लेकर सख्ती की जा रही है।

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